मकर संक्रांति केवल एक त्यौहार नहीं है, यह वह दिन है जब सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है और उत्तरायण की शुरुआत होती है। यह त्यौहार न केवल धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व रखता है, बल्कि जीवन में सकारात्मक ऊर्जा और समृद्धि लाने का भी प्रतीक है। इस लेख में, हम मकर संक्रांति के महत्व, परंपराओं, और इस दिन को खास बनाने वाले अनोखे तरीकों के बारे में जानेंगे।
मकर संक्रांति का महत्व
मकर संक्रांति हिंदू पंचांग के अनुसार सूर्य के मकर राशि में प्रवेश का समय है। इस दिन से दिन बड़े और रातें छोटी होने लगती हैं। इसे ‘उत्तरायण’ की शुरुआत भी कहा जाता है, जो सुख, शांति और समृद्धि का प्रतीक है। पुराणों के अनुसार, मकर संक्रांति का सीधा संबंध भगवान सूर्य से है, जो जीवन की ऊर्जा के स्रोत हैं।
मकर संक्रांति की परंपराएँ

1. तिल और गुड़ का महत्व:
तिल और गुड़ से बनी मिठाइयाँ इस पर्व का प्रमुख हिस्सा हैं। तिल गर्माहट का प्रतीक है और गुड़ रिश्तों में मिठास लाता है।
2. दान और पुण्य:
इस दिन दान-पुण्य का विशेष महत्व है। अन्न, कपड़े और धन का दान करना शुभ माना जाता है।
3. पक्षियों को दाना डालना:
मकर संक्रांति पर पक्षियों को दाना डालना करुणा और दया का प्रतीक है। इसे पर्यावरण की रक्षा का संदेश भी माना जाता है।
4. पतंगबाजी:
गुजरात, राजस्थान और उत्तर भारत के कई हिस्सों में इस दिन पतंग उड़ाने की परंपरा है। आसमान में रंग-बिरंगी पतंगें त्यौहार के उत्साह को बढ़ाती हैं।
मकर संक्रांति कैसे मनाएँ?
सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और सूर्य देव को जल अर्पित करें।
तिल-गुड़ के लड्डू बनाएं और बांटें।
जरूरतमंदों को दान दें और परिवार के साथ पतंग उड़ाने का आनंद लें।
धार्मिक स्थलों पर जाएं और भगवान का आशीर्वाद लें।
मकर संक्रांति की खसियत:
2025 में मकर संक्रांति 15 जनवरी को मनाई जाएगी। यह दिन ज्योतिषीय दृष्टि से बेहद शुभ है। माना जा रहा है कि इस दिन विशेष पूजा-अर्चना करने से साल भर सुख-समृद्धि बनी रहेगी।
मकर संक्रांति केवल एक पर्व नहीं है, यह हमारी संस्कृति, परंपरा और आध्यात्मिकता का संगम है। इस दिन किए गए छोटे-छोटे अच्छे कार्य आपके जीवन में बड़े बदलाव ला सकते हैं। तो इस मकर संक्रांति, सूर्य देव को नमन करें, परंपराओं का पालन करें, और अपनी किस्मत को बदलने के लिए तैयार हो जाएं।