स्वस्थ कौन?

स्वस्थ कौन?

सुश्रुत संहिता सूत्र 15/42 के अनुसार –

“समदोषः समाग्निश्च समधातु मलक्रिया।

प्रशन्नात्मेन्द्रियमनाः स्वस्थ इत्यभिधीयते॥”

 

👉 यानी –जिसके शरीर में दोष (वात, पित्त, कफ) संतुलित हों, •जठराग्नि (पाचन अग्नि) सही हो,

•सप्तधातु (रस, रक्त, मांस, अस्थि, मज्जा, शुक्र) समान हों,

•मल-मूत्र और पसीने का विसर्जन ठीक हो,

•आत्मा, इन्द्रियां और मन प्रसन्न हों –

👉उसे ही स्वस्थ कहा जाता है।

 

 

सकारात्मक सोच की ताकत

स्वस्थ कौन सिर्फ शरीर से रोगमुक्त व्यक्ति नहीं होता, बल्कि मन और आत्मा से भी प्रसन्न होता है।

सकारात्मक सोच से असाध्य रोग और कठिनाइयाँ भी मिट सकती हैं।

जब आप सोचते हैं कि –

“हे प्रभु, आपकी कृपा से मैं पूर्ण स्वस्थ हूँ। ब्रह्मांड की सारी शक्तियाँ मेरे भीतर हैं। आपके आशीर्वाद से मेरे रोग मिट चुके हैं।”

तो यह विचार शरीर, मन और आत्मा को शक्ति देता है।

👉 याद रखें – “हे परमपिता, आप ही मेरे चिकित्सक हैं। मैं आपका पुत्र हूँ और मैं स्वस्थ हूँ। मैं धनवान हूँ। मैं दयावान हूँ।”

 

स्वास्थ्य रक्षा के पांच स्वर्णिम नियम

① जल्दी सोना और सूर्योदय से पहले उठना

➡️ बुद्धि, स्वास्थ्य और दीर्घायु की प्राप्ति के लिए यह आदत जरूरी है।

 

② रोज व्यायाम और प्राणायाम

➡️ फेफड़े मजबूत करने और रक्तसंचार ठीक रखने के लिए 15 मिनट गहरी सांस वाले व्यायाम करें – जैसे दौड़ना, टहलना, सूर्य नमस्कार, दण्ड-बैठक, प्राणायाम।

 

③ सही खानपान की आदत

➡️ रक्तवृद्धि और अच्छी पाचनशक्ति के लिए –

खाने की चीज़ को अच्छी तरह चबा-चबाकर (कम से कम 32 बार) गीला करें। तरल चीजों को घूंट-घूंट करके पिएँ।

④ तनाव, क्रोध और चिंता से बचें

➡️ मानसिक शांति और प्रसन्नता के लिए रोज ध्यान (Meditation) करें।

➡️ इससे उच्च रक्तचाप, हृदय रोग, कैंसर और मानसिक रोगों से बचाव होता है।

 

⑤ जीवन में संतुलन रखें

➡️ “अति सर्वत्र वर्जयेत्” – यानी हर चीज़ में संतुलन।

➡️ आवश्यकता से अधिक खाना-पीना, बोलना, खर्च करना और समय बर्बाद करना हानिकारक है।

 

आयुर्वेद स्पष्ट करता है कि स्वस्थ कौन – यह सिर्फ रोगमुक्त होना नहीं है बल्कि शरीर, मन और आत्मा का संतुलन है।

👉 अगर आप सकारात्मक सोच और इन 5 स्वर्णिम नियमों को जीवन में अपनाएँ, तो न केवल रोग दूर होंगे बल्कि जीवन खुशहाल, लंबा और ऊर्जावान होगा।

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